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Wednesday, September 12, 2007

जीवन संध्या मे सबल सहारा - वानप्रस्थ आश्रम


जीवन संध्या मे सबल सहारा - वानप्रस्थ आश्रम

ऋषियों ने जीवन को चार पडावों में बाटा है - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। हर पड़ाव मे सौन्दर्य है और गरिमा है। उसी गरिमा एवं सौन्दर्य को उपजाने का नाम आश्रम है।

आश्रमों के निर्माण के पीछे निहित भावना है मानव के जीवन का पुष्प पूर्ण रुपें विकसित हो सके। जीवन जीने की कला सिखाने के प्रयौग्शाला है। इन आश्रमों में मानव विकास केंद्र स्थापित हो रहे हैं उनके द्वारा प्रतिभा को निखारने, उभारने के मानोवैज्ञानिक प्रयोग किये जाते है। युवा गृहस्थ लोगों को गृहस्थ मे सूखी रह सकने और उच्च आदर्श प्राप्त कराने के लिए गोष्ठी तथा ध्यान प्रयोग शिविर आयोजित किये जाते है। तनाव, अशांति, घोर निराशा, चिन्ता, भय , मानसिक निर्बलता को दुरकर आत्म उद्धार कराने के लिए योग शिविर का संचालन किया जाता है। परम प्रभु की प्राप्ति के लिए शिविर में साधकों को आमंत्रित किया जाता है। जहाँ स्वयं के लिए स्वयं पर प्रयोग करते हुए अपनी चेतना को विकसित कराने के लिए बहुविधि यौगिक प्रयोग किये जाते है। योगशाला न केवल अध्यात्मिक खोज का साधन है अपितु भौतिक कार्यक्षमता, प्रतिभा, सामर्थ्य को भी उच्च स्थर पर ले जाने का सफल माध्यम भी है।

सारांश है कि आश्रम जीवन के हर पड़ाव पर एक सच्चे हितैषी मित्र की तरह सहयोगी बनता है। इसी भावना को ध्यान में रखकर परम पूज्य सुधांशुजी महाराज ने आनंदधाम आश्रम की दिल्ली मे स्थापना की।

आज आनंदधाम आश्रम संपूर्ण जगत में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। इसी भावना के अनुरुप संपूर्ण भारत में तथा देश - विदेश में आश्रम निर्माण शृंखला प्रारम्भ हो चुकी है। भारत में दस महानगरों में उपयुक्त स्थलों पर आश्रम निर्माण कार्य चल रहा है।

लंबी राह तय करते करते आखरी पड़ाव में पहुंच कर जीवन अपने को थका हुआ अनुभव करने लगता है। जब तक गृहस्थ के उत्तरदायित्व थे, व्यापार - धंधे थे तब तक कई लोगों का रोज संग मीलता था, रोज कई लोग मित्र बनंत थे। काम धंधों से रिटायरमेंट के बद कई संगी - साथियों का संग अचानक टूट सा जाता है। पराने नए रोगों से नित लडाई, सामर्थ्य का अभाव, बच्चों की शुष्क उपेक्षा जीवन को तोड़ देती है।

Photo : VJM Singapore Shradha Parv 2007

Param Pujya Guru Sudhanshu Ji Maharaj

विश्व मंगल दिवस स्मरनिका २००५








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